सुप्रीम कोर्ट ने जयपुर जल महल झील की उपेक्षा करने और इसे प्रदूषित होने देने के लिए नगर निगम जयपुर हेरिटेज पर कड़ी नाराजगी जताई है। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की खंडपीठ ने नगर निकाय को झील में प्रदूषण को रोकने के लिए तत्काल उपायों पर एक व्यापक रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है। साथ ही झील के जीर्णोद्धार और संरक्षण के लिए दीर्घकालिक उपायों का सुझाव देने के लिए राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (NEERI) को नियुक्त करने का निर्देश दिया है। सुनवाई के दौरान नगर निगम आयुक्त को अपने पीछे “स्मार्ट सिटी” शब्द के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पेश होता देख नाराज सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हमें आश्चर्य है कि जल महल झील को नुकसान पहुंचाकर जयपुर शहर ‘स्मार्ट’ कैसे बन जाएगा?।
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि नगर निगम हेरिटेज जयपुर की उपेक्षा और अवैध कृत्यों के कारण जल महल झील पूरी तरह से नष्ट हो गई है। कोर्ट ने पाया कि आसपास के क्षेत्र में रात्रि बाजार संचालित करने की अनुमति दी गई थी, गंदा सीवेज पानी झील में छोड़ा गया था। निगम का अपशिष्ट पदार्थ भी छोड़ा गया था, जिसके कारण पानी पूरी तरह से दूषित हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कथित विकास परियोजना का जल महल झील के जीर्णोद्धार और संरक्षण से कोई लेना-देना नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने नगर निगम के अधिकारियों को NEERI की सिफारिशें प्राप्त होने से पहले विकास परियोजना शुरू नहीं करने का आदेश दिया। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने नगर निगम हेरिटेज जयपुर को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि जल महल झील के आसपास किसी भी वेंडिंग या बाजार गतिविधि की अनुमति ना दी जाए। मामले की अगली सुनवाई 24 मार्च को होगी।
आपको बता दें कि NGT के 2023 के आदेश को चुनौती देने वाली नगर निगम की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा था, जिसमें नगर निकाय को झील के पास रात्रि बाजार या अन्य गतिविधियों की अनुमति देने से पहले पर्यावरण मंजूरी लेने की आवश्यकता बताई थी। NGT ने नगर निगम के अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया था कि नाहरगढ़ वन्यजीव अभयारण्य और इको-सेंसिटिव जोन के संबंध में जारी अधिसूचना के उल्लंघन में किसी भी गतिविधि की अनुमति ना दी जाए