1998 में बिहार के पूर्व मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 8 आरोपियों में से पूर्व सांसद सूरजभान समेत 6 लोगों को बरी करने के पटना हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इन 6 आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी करने के हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा है। हालांकि जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने पटना हाईकोर्ट के फैसले को आंशिक रूप से रद्द करते हुए मुन्ना शुक्ला और मंटू तिवारी को उम्रकैद की सज़ा सुनवाई है। कोर्ट ने दोनों दोषियों को 15 दिन के अंदर सरेंडर करने का निर्देश दिया है।
दरअसल, 2014 में पटना हाई कोर्ट ने इस केस में पूर्व सांसद सूरजभान सिंह, पूर्व विधायक मुन्ना शुक्ला समेत 8 लोगों को बरी कर दिया था। इस आदेश को बृज बिहारी प्रसाद की पत्नी रमा देवी और सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अपने फैसले में कहा कि मंटू तिवारी और विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) और 307 (हत्या का प्रयास) के तहत आरोप साबित हुए हैं। हाईकोर्ट ने 24 जुलाई 2014 को कहा था कि अभियोजन पक्ष के साक्ष्यों पर गौर करने के बाद सूरजभान सिंह उर्फ सूरज सिंह, मुकेश सिंह, लल्लन सिंह, मंटू तिवारी, कैप्टन सुनील सिंह, राम निरंजन चौधरी, शशि कुमार राय, मुन्ना शुक्ला और राजन तिवारी संदेह का लाभ पाने के हकदार हैं।
आपको बता दें कि साल 2009 में इस मामले की सुनवाई करते हुए निचली अदालत ने दो पूर्व विधायकों राजन तिवारी और विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला, पूर्व सांसद सूरजभान सिंह सहित सभी 8 आरोपियों को इस मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई थी। निचली अदालत के फैसले को सभी आरोपियों ने पटना हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जिसके बाद पटना हाईकोर्ट में इस मामले में निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए सबूतों के अभाव में सभी आरोपियों को बरी कर दिया था। इसके बाद 24 जुलाई 2014 को पटना हाई कोर्ट ने अभियोजन के सुबूतों को देखने के बाद कहा था कि सूरजभान सिंह उर्फ सूरज सिंह, मुकेश सिंह, लल्लन सिंह, मंटू तिवारी, कैप्टन सुनील सिंह, राम निरंजन चौधरी, शशि कुमार राय, विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला और रंजन तिवारी संदेह का लाभ पाने के हकदार हैं। साथ ही हाईकोर्ट ने सभी आरोपियो को दोषी ठहराने व उम्रकैद की सजा सुनाने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया था।