सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली सरकार से कहा कि वो जल संकट के मद्देनजर पानी की सप्लाई के लिए अपर यमुना रिवर बोर्ड का रुख करें। जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस प्रसन्ना भालचंद्र वरले की वेकेशन बेंच ने कहा कि दिल्ली सरकार गुरुवार को शाम 5 बजे तक अपर यमुना रिवर बोर्ड को मानवीय आधार पर 152 क्यूसेक अतिरिक्त पानी उपलब्ध कराने के लिए अर्जी दे। बोर्ड इसको लेकर जल्द से जल्द मीटिंग बुलाए और दिल्ली सरकार की अर्जी पर जल्द से जल्द फैसला ले। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी राज्यों में बीच यमुना के पानी का बंटवारा अपने आप में एक जटिल और संजीदा मसला है। कोर्ट के पास इस मामले पर फैसला लेने के लिए कोई तकनीकी विशेषज्ञता नहीं है। लिहाजा बेहतर होगा कि ये मसला विचार के लिए अपर यमुना रिवर बोर्ड पर छोड़ दिया जाए।
हिमाचल सरकार ने गुरुवार को इस केस में यू टर्न लेते कहा कि उसके पास दिल्ली को देने के लिए अतिरिक्त पानी नहीं है। राज्य सरकार ने इसको लेकर कोर्ट में दिए अपने बयान को वापस ले लिया। इसपर सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि यह बेहद संवेदनशील मामले में आपने कोर्ट में गलत जवाब कैसा दिया। कोर्ट ने कहा कि 37 क्यूसेक अतरिक्त पानी की जो बात कही वो गलत है। इतना संवेदनशील मामला में उतना हल्का जवाब दिया गया। आप पर कोर्ट की अवमानना का मुकदमा क्यों न चलाया जाए? हम आपके सचिव को भी तलब कर सकते है। जवाब में हिमाचल सरकार ने कहा वो माफी मांगते है, वो हलफनामा दाखिल कर अपने जवाब को रिकॉर्ड से वापस लेंगे। हालांकि कोर्ट ने कहा कि इस मामले को UYRB के सामने अपना यह बयान दे ताकि मामला जटिल न हो। ऐसा इस लिए क्योंकि यह इमरजेंसी मामला है।
हिमाचल सरकार की तरफ से कहा गया है कि हमारी नियत सही थी, हालांकि जो जवाब दाखिल किया गया है, उसमें कुछ कमियां है उसको ठीक किया जाएगा और कोर्ट के सामने रिकॉर्ड को दिया जाएगा।हिमाचल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि हम अपना हलफनामा वापस ले रहे हैं और इसकी जगह एक नया हलफनामा दाखिल करेंगे। हिमाचल प्रदेश सरकार के आग्रह को कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश मे हरियाणा सरकार के बयान को रिकॉर्ड पर लिया। कोर्ट ने कहा कि हमारे 6 जून के आदेश के मुताबिक हमने सभी पक्षों को स्टेट्स रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था, जिसके बाद दिल्ली सरकार ने कोर्ट को बताया कि वजीराबाद मे पानी करार के मुताबिक मेंटेन नही किया गया। जबकि हरियाणा सरकार ने कहा कि उन्होंने पानी को रिलीज किया है। मुनक कैनाल के जरिए पानी रिलीज किया गया है। जबकि हरियाणा सरकार ने कहा कि उनके पास अतरिक्त पानी नही है, लेकिन 1994 के करार के मुताबिक दिल्ली को पानी दे रहे है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी पक्षों को सुनने के बाद हमारा मानना है कि पहले के समझोते पर किए गए हस्ताक्षर करने वाले राज्यों के बीच पानी साझा करने से संबंधित य़ह मुद्दा जटिल और संवेदनशील है और अदालत इस विषय की विशेषज्ञ नही है। ऐसे में इस मामले को यमुना रिवर फ्रंट बोर्ड को सुनना चाहिए। साथ ही कहा कि UYRB को पहले ही मानवीय आधार पर 152 क्यूसेक अतरिक्त पानी के लिए एक आवेदन प्रस्तुत करने का अनुरोध कर चुका है। कोर्ट ने कहा कि बोर्ड इस संबंध में 14 मई इससे जुड़े सभी पक्षों की एक मीटिंग बुलाए, दिन प्रतिदिन के आधार पर बैठक कर समस्या पर संज्ञान ले। कोर्ट ने कहा कि आने वाले 15 से 20 दिन का ही मामला है। इसी साथ सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार की याचिका का निपटारा भी कर दिया।