महज एक आम के लिए हुई हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उम्रकैद को 7 साल की सजा में तब्दील कर दिया। साथ ही जुर्माने के साथ सात साल की सजा तय करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह पूर्व नियोजित हत्या का मामला नहीं है, क्योंकि घटना आम के लिए बच्चों के बीच लड़ाई से शुरू हुई थी, जो दुर्भाग्य से तब बढ़ गई जब परिवार के बड़े लोग भी इसमें शामिल हो गए। अंततः मौत का यही कारण बना और एक बच्चे के पिता की हत्या हो गई।इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खुलाफ दायर एक आपराधिक अपील में जस्टिस सुधांशु धूलिया की अध्यक्षता वाली पीठ ने दोषियों की सजा के आदेश को बरकरार रखा। हालांकि उम्रकैद की सजा को कम करते हुए सात साल कर दिया।
और क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने…
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि कोर्ट IPC की धारा 302 के तहत दोषसिद्धी को बरकरार रखता है। पीठ में जस्टिस ए अमानुल्लाह भी शामिल थे। पीठ ने कहा कि इस हत्या का कारण एक लड़ाई थी, जो बच्चों के बीच आम को लेकर शुरू हुई थी। यह पूर्व नियोजित नहीं थी, इसमें परिवार के वयस्क लोगों के शामिल होने के चलते हत्या हुई। इसलिए अदालत सभी दोषियों की आजीवन कारावास की सजा को सात साल के कठोर कारावास में तब्दील करती है। साथ ही हरेक दोषी को फैसले की तारीख से आठ सप्ताह की अवधि के भीतर 25 हजार रुपये का जुर्माना भुगतना होगा। यह रकम पीड़ित परिवार को दोषियों की ओर से सौंपी जाएगी।
क्या था पूरा मामला
उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में आम के लिए विवाद अप्रैल 1984 में हुआ था, जब दो बच्चों के बीच का झगड़ा दो परिवारों का युद्ध बन गया। इस दौरान दोषी के परिवार के हमले से विवाद में शामिल एक बच्चे के पिता की मौत हो गई। एफआईआर में नामित पांच आरोपी हमले के दौरान मृतक को लाठियों से पीट रहे थे। गंभीर रूप से घायल को जिले के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया था। दोषियों के खिलाफ आईपपीसी की धारा 302, 147, 149, 323 के तहत अपराध के लिए मुकदमा चलाया गया और एडीशनल सेशन जज ने सभी को दोषी करर देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई। इस फैसले के खिलाफ पांचों आरोपियों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील दायर की। हाईकोर्ट में अपील लंबित रहने के दौरान पांच में से दो दोषियों की मौत हो गई। बाकी तीन आरोपियों की सजा को हाईकोर्ट ने बरकरार रखा और इसके बाद दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।