सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि चाइल्ड पॉर्नोग्राफी यानी बच्चों के साथ यौन अपराध से जुड़े वीडियो को सिर्फ डाउनलोड करना या देखना या फिर उसे अपने पास इलेक्ट्रॉनिक गजेट में रखना भी अपराध माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसे पॉक्सो एक्ट के सेक्शन 15 (1) के तहत अपराध माना जाएगा। CJI डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने ने कहा कि भले ही उस वीडियो को किसी शख्श ने पब्लिश न किया हो या फिर किसी दूसरे शख्श को न भेजा हो, लेकिन अगर वो ऐसे वीडियो को अपने पास रखता है तो वो भी अपराध माना जाएगा।
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के उस फैसले को रद्द किया, जिसमे हाई कोर्ट ने कहा था कि अपने फोन में बच्चों के साथ यौन शोषण के वीडियो को सिर्फ रखने भर से किसी को पॉक्सो कानून और IT कानून की धारा 67B के तहत आरोपी नहीं बनाया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को दोबारा सुनवाई के लिए सत्र न्यायालय भेजा दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने पॉक्सो कानून के तहत अपराध की परिभाषा को और व्यापक करने के लिए संसद को “चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी” शब्द को “Child Sexual Exploitative and Abuse Material” से बदलने के लिए अध्यादेश लाने का सुझाव भी दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी अदालतों को “चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी” शब्द का इस्तेमाल न करने का निर्देश भी दिया है।