अरविंद केजरीवाल की याचिका पर फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ED मनी लॉन्ड्रिंग केस में किसी शख्श की गिरफ्तारी करते वक़्त उन तथ्यों या सबूतों को नज़रअंदाज नहीं कर सकती है जो आरोपी के पक्ष में जाते हो। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच अपने लिखित फैसले में कहा कि जांच अधिकारी को इस बात की इजाज़त नहीं दी जा सकती कि वो सबूतों को लेकर ‘सलेक्टिव’ हो, ये नहीं हो सकता कि अधिकारी सिर्फ उसी ‘मेटरियल’ के आधार पर फैसला ले जो आरोपी को केस में फंसाने वाला हो, जो तथ्य आरोपी के पक्ष में जाते है, उन पर भी जांच अधिकारी को गौर करना चाहिए। पीएमएलए के सेक्शन 19 के तहत गिरफ्तारी के अधिकार का इस्तेमाल अधिकारी अपनी मनमर्जी के मुताबिक नहीं कर सकते।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ED की ओर से दर्ज केस और गिरफ्तारी के आकंडो से ये सवाल उठता है कि क्या गिरफ्तारी को लेकर ED की कोई अपनी पॉलिसी भी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ED को सभी आरोपियों के लिए ‘एक समान रवैया’ रखना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि PMLA के सेक्शन 19 के तहत गिरफ्तारी की वैधता से जुड़े जो सवाल विचार के लिए बड़ी बेंच को भेजे गए है, उन पर गहन विचार विमर्श की ज़रूरत है। जीवन का अधिकार बहुत अहम है। केजरीवाल पहले ही 90 से ज़्यादा दिन जेल में गुजार चुके है, इसलिए हम अन्तरिम ज़मानत अभी दे रहे है, अंतरिम ज़मानत की शर्तें भी कोर्ट ने तय की है
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि बड़ी बेंच इस अंतरिम जमानत की मियाद को बढ़ा भी सकती है या रद्द भी कर सकती है। कोर्ट ने फैसले के आखिरी हिस्से में साफ किया है कि इस फैसले में की गई कोर्ट की टिप्पणियों का इस केस या आरोप को लेकर कोर्ट की राय न माना जाए। कोर्ट ने साफ किया है कि अगर केजरीवाल की नियमित ज़मानत का सवाल कहीं पेंडिंग है तो जज इस फैसले से प्रभावित हुए बगैर अपने पास उपलब्ध तथ्यों या सबूतों के आधार पर उस पर फैसला लेंगे, दरअसल, ये टिप्पणी इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि ED के केस में केजरीवाल की नियमित ज़मानत का मसला अभी दिल्ली HC में लंबित है। HC को तय करना है कि निचली अदालत से मिली केजरीवाल की ज़मानत को बरकरार रखा जाए या रद्द किया जाए
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक HC के जज स्वतंत्र है, वो चाहे तो निचली अदालत से मिली नियमित ज़मानत वाले फैसले को बरकरार रखें या रद्द करें, दिलचस्प ये होगा कि अगर HC ED केस में नियमित ज़मानत को रद्द कर देता है तो फिर आज सुप्रीम कोर्ट से मिली अंतरिम ज़मानत का कोई औचित्य नहीं रहेगा। अरविंद केजरीवाल को CM पद पर बने रहना चाहिए या नहीं, ये मामला सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल पर छोड़ पर दिया है। कोर्ट ने कहा कि केजरीवाल चुने हुए नेता है, दिल्ली के CM है। निश्चित रूप से ये पद प्रभावशाली है। लेकिन उनको CM रहना चाहिए या नहीं, इस पर कोर्ट अपनी ओर से कोई निर्देश नहीं दे सकता। ये फैसला ख़ुद केजरीवाल को लेना है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बड़ी बेंच चाहे तो ऐसी सूरत में विचार के लिए मुद्दे तय कर सकती है और इस पर भी फ़ैसला दे सकती है कि ऐसी सूरत में कोर्ट क्या शर्ते लगाए।